20 May 2018
21 Feb 2018
15 Feb 2018
हलवा

हलवा

दिसंबर का दिन था, आंखे खुलने से मना करती थी, खुलकर करती भी क्या? सर्द कोहरे में इनका काम कम था। फिर भी इनसे लड़कर बाजार से बेहतरिन लाल गा...

21 Dec 2017
11 Dec 2017
परिंदे

परिंदे

परिंदे ख्वाब देखता आया हु तफुलियत से, परिंदो जैसी उड़ान भरने के। आज जब हवा में पर फड़फड़ा रहे है, याद आता है ज़मीं पर चलना।  

12 Nov 2017
11 Nov 2017
घड़ी

घड़ी

घड़ी घड़ी पर नज़र लगाए रहते है, तो लगता है कि समय रुक गया है, टिक टिक करती सेकंड की सुई बढ़ रही है, पर बाकी कांटो पर कोई असर ही नही दिखता! घ...

5 Nov 2017